#छत्तीसगढ़ #दंडकारण्य

पुलिस हिरासत में बदमाश के मौत की जांच शुरू, न्यायिक मजिस्ट्रेट पहुंचे थाने तो पुलिसकर्मियों के उड़े होश, सीसीटीवी फुटेज भी मिला गायब!

पुलिस हिरासत में बदमाश के मौत की जांच शुरू,
न्यायिक मजिस्ट्रेट पहुंचे थाने तो पुलिसकर्मियों के उड़े होश, सीसीटीवी फुटेज भी मिला गायब!

कोरबा। पुलिस की हिरासत में आदतन बदमाश सूरज हथठेल की मौत का मामला और भी तूल पकड़ता जा रहा है. एक दिन पहले मंगलवार को इस मामले की न्यायिक जांच कर रहे न्यायिक जांच अधिकारी राहुल शर्मा सीनियर जेएमएफसी, न्यायालय कटघोरा दर्री थाना पहुंच गए. जहां उन्होंने इस मामले से संबंधित दस्तावेज और अन्य पहलुयों पर जांच की, ऐसी सूचना है कि उन्हें थाने से संतोषजनक जवाब नहीं मिला. सीसीटीवी फुटेज तक नहीं दिखाया गया. जिस पर वह नाराज भी हुए और समस्त साक्ष्य उपलब्ध कराने का अल्टीमेटम भी दिया है. मजिस्ट्रेट थाने के साथ ही जहां से सूरज को गिरफ्तार किया गया था उसे घटनास्थल सहित सिविल लाइन थाना भी पहुंचे थे और इस मामले की गंभीरता से पूछताछ भी की. जिनके तेवर देखकर मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों के होश उड़े हुए थे.
इस संबंध में हमने जब दर्री थाना की नवदस्थ टीआई और सीएसपी से जानकारी ली, तब दोनों की बातों में विरोधाभास भी था. इस मामले में दर्री के तत्कालीन टीआई सहित तीन पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया है. सूत्रों की मानें तो इनमें से एक आरक्षक दर्री थाना में एक दशक से भी ज्यादा समय से पदस्थ था। पुलिस कस्टडी में मौत की इस वारदात ने जिले की पूरी पुलिसिंग पर ही बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है.

 

ना सीसीटीवी फुटेज ना ही अन्य दस्तावेज :

न्यायिक जांच अधिकारी मंगलवार को दर्री थाना पहुंच गए थे. जहां उन्होंने सबसे पहले सीसीटीवी फुटेज दिखाने की बात कही. लेकिन उन्हें जवाब दिया गया कि कैमरा खराब है. सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध नहीं है. इसके बाद उन्होंने रोजनामचा की जांच की, लेकिन वहां भी सूरज को हिरासत में लिए जाने के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली. किसी भी तरह का कोई संतोषप्रद जवाब नहीं मिलने पर उन्होंने थाना स्टाफ के प्रति गहरी नाराजगी व्यक्ति की.
बताया जा रहा है कि वह घटनास्थल की तरफ भी गए थे और यह पता लगाने का प्रयास किया कि किन परिस्थितियों में सूरज को यहां लाया गया था. दर्री में रखने के बाद जब सूरज को यहां से अस्पताल ले जाया गया, तब उसकी स्थिति क्या थी. जिससे अस्पताल पहुंचने पर उसकी मौत हो गई. वह दर्री थाना के साथ ही सिविल लाइन थाना में भी पहुंचे थे. यहां भी उन्होंने पुलिस हिरासत में सूरज की मौत को लेकर आवश्यक जानकारी जुटाई.

 

सीएसपी और टीआई बातों में विरोधाभास :

मजिस्ट्रेट के थाने में पहुंचने और संतोषजनक जवाब नहीं मिलने के संबंध में दर्री के सीएसपी रविंद्र मीणा और नव पदस्थ टीआई किरण गुप्ता से बात करने पर दोनों ही की बातों में विरोधाभास देखने को मिला.
सीएससी का कहना है कि जब मजिस्ट्रेट थाने पहुंचे थे. तब टीआई वहां मौजूद थी. उन्हें इसकी जानकारी है. लेकिन तब क्या हुआ, इसकी जानकारी नहीं है. जबकि टीआई से बात करने पर उनका कहना है कि मजिस्ट्रेट के आने की उन्हें कोई सूचना ही नहीं है. एक दिन पहले ही थाने का प्रभार लिया है. इसलिए अभी तो थाने में किसी भी स्टाफ का नाम तक नहीं मालूम. इस विषय में कोई जानकारी ही नहीं है. इस विरोधाभास का कारण केवल एक ही हो सकता है, और वो यह की किसी न किसी बात पर पर्दा डालने का पूरा प्रयास किया जा रहा है.

 

निलंबित आरक्षक का एक दशक से निराला खेल :

पुलिस विरासत में मौत के मामले में दर्री थाना के एक आरक्षक को भी निलंबित कर दिया गया है. जिसका खेल बेहद निराला है. वह एक दशक से भी अधिक समय से अपने रसूख के दम पर दर्री में ही पदस्थ है. इस दौरान उसका 6 बार तबादला भी हुआ. लेकिन कुछ महीने किसी और थाना में पदस्थापना के बाद वह वापस लौटकर दर्री में ही अपनी सेवाएं देता रहा है.
इस दौरान कोरबा जिले में कितने ही एसपी आए और चले गए. सरकारें बदल गई, लेकिन इस आरक्षक को कोई दर्री थाना से नहीं हिला सका. स्थानीय लोगों में यह चर्चा आम रहती है की थाने के सारे जरूरी काम और संचालन इसी आरक्षक के माध्यम से ही पूर्ण किए जाते रहे हैं. यह बेहद हैरानी वाली बात है कि एक आरक्षक स्तर का पुलिसकर्मी इतने लंबे समय से एक ही थाने में पदस्थ रहा. जिस पर किसी की नजर नहीं गई और अब पुलिस हिरासत में मौत हो जाती है. जिसके बाद अब इस आरक्षक को निलंबित किया गया है.

 

जिनपर 304 का मामला दर्ज ऐसे पुलिसकर्मियों की भी भूमिका :

पुलिस महकमे में रसूख के दम पर किस हद तक सेटिंग की जा सकती है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2016 में हरदीबाजार क्षेत्र के निवासी शब्बीर जोगी की पुलिस हिरासत में मौत के बाद कुछ पुलिसकर्मियों पर आईपीसी की धारा 304 के तहत मामला दर्ज किया गया था. यानी ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करना जिससे किसी की मौत हो जाए.
2016 में जिन पुलिसकर्मियों की भूमिका शब्बीर के मौत में थी. मौजूदा मामले में भी उनकी भूमिका संदेहास्पद हो सकती है. ऐस दागी पुलिसकर्मी लगातार कोरबा जिले में एक टीम की तरह काम कर रहे थे. बड़ा सवाल यह है कि ऐसे दागी पुलिसकर्मियों पर बार-बार क्यों भरोसा जताकर अहम जिम्मेदारी दी जाती है?
क्या पुलिस महकमें मे काम करने वाले काबिल और मेहनती लोगों की इतनी कमी है? कि बार बार दागियों को ही अवसर मिल जाता है? आखिर उच्च अधिकारियों की ऐसी कौन सी मजबूरी है? पिछली गलतियों से आला अधिकारी क्यों सीख नहीं लेते?

 

क्या क्राइम ब्रांच की तरह काम कर रही है एक टीम?:

पुलिस के बड़े अधिकारी भले ही इस बात से इनकार कर रहे हैं कि जिले में कोई एक विशेष टीम काम कर रही है. लेकिन जिले के पुलिस मुख्यालय से जारी सूचनाओं पर नजर डालें तो पिछले लगभग 5-6 महीना से एक विशेष टीम द्वारा जिले में कार्यवाही किए जाने की पुष्टि होती है. जिले में चलने वाले अवैध कारोबार जिसमें कबाड़, कोयला, डीजल और इस तरह के मामले हैं. उनपर की गई कार्यवाही में जिन पुलिसकर्मियों के नाम दिए जाते हैं. वह साइबर सेल की टीम में एक अघोषित क्राइम ब्रांच के टीम की तरह ही काम कर रहे थे. जिसे साइबर सेल का नाम भले ही दिया गया हो, लेकिन यह टीम पूरी तरह से क्राइम ब्रांच के स्टाइल में काम कर रही थी.

 

वर्जन

1. मजिस्ट्रेट की आने की मुझे कोई जानकारी नहीं है. मैंने एक दिन पहले ही सोमवार की रात को दर्री थाना का प्रभार लिया है. इसलिए मुझे फिलहाल स्टाफ का नाम भी नहीं मालूम है. मजिस्ट्रेट आए या नहीं आए, उस समय कौन मौजूद था. इस विषय में मुझे कोई जानकारी नहीं है.

–किरण गुप्त,  टीआई थाना दर्री

2. मजिस्ट्रेट जब दर्री थाना पहुंचे थे. तब मैं उस वक्त मौके पर मौजूद नहीं था. बाद में मुझे पता चला कि उन्होंने घटनास्थल का भी निरीक्षण किया है. उस वक्त दर्री की टीआई थाने में मौजूद थी. वही इस विषय में ज्यादा जानकारी दे सकती हैं. मुझे इस विषय में ज्यादा जानकारी नहीं है.

रविन्द्र मीणा, सीएसपी दर्री