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उधार में चल रहा मिड डे मील का आहार, 4 महीने से समूहों और रसोइयों को नहीं मिले पैसे!

कोरबा. 4 महीने से भुगतान नहीं मिलने के कारण प्रदेश भर के सरकारी मिडिल और प्राइमरी स्कूलों में मिड डे मील की व्यवस्था चरमरा गई है. ग्रामीण क्षेत्र में कई स्कूलों में मिड डे मिल नहीं मिलने की सूचना है, तो जहां यह चल रहा है. वहां दुकानदारों के रहमो करम पर चलाए जा रहा है. कहीं प्रधान पाठक अपने जेब से पैसे लग रहे हैं, तो कहीं महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं अपने पैसे लगाकर इसका संचालन कर रही हैं.
सूत्रों की माने तो केंद्र सरकार से ही भुगतान जारी नहीं हुआ है. इसके कारण समूहों को पैसे जारी नहीं हुए हैं. समूह के अधीन कार्यरत रसोइयों को ₹1500 प्रति माह का मानदेय प्रदान किया जाता है. इन्हें भी पैसे नहीं दिए गए हैं. जिसके कारण कुछ स्कूलों में सिर्फ दाल, चावल अचार या चावल और सब्जी देकर बच्चों को मिड डे मील खिलाया जा रहा है.
भुगतान जारी नहीं होने के पीछे कारण चाहे जो भी हो, फिलहाल स्कूलों में मिड डे मील की हालत बेहद चिंताजनक है.

प्रदेश में इतने बच्चों को मिलता है मिड डे मील :

छत्तीसगढ़ की पूर्व कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री डॉ. टेकाम ने विधानसभा में यह जानकारी थी कि प्रदेश के प्राथमिक शाला में 16 लाख 94 हजार 548 बच्चे हैं. जबकि माध्यमिक शाला में 3 लाख 56 हजार 774 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं.
मध्याह्न भोजन की व्यवस्था सरकारी प्राइमरी और मिडिल स्कूल में ही होती है. हाई और हायर सेकेंडरी के बच्चों को मिड डे मील नहीं दिया जाता.

महंगाई के दौर में ₹8 और ₹5 प्रति छात्र :

महंगाई के इस दौर में मिड डे मील का मीनू बना हुआ है. जिसके अनुसार मिड डे मील में समूह के द्वारा बच्चों को दाल, चावल, हरी सब्जी, सलाद पापड़ और अचार देने का नियम है.
प्रतिदिन के अनुसार मीनू तय है. लेकिन इसके लिए प्रति छात्र के हिसाब से जो राशि मिलती है. वह चौंकाने वाली है. मिडिल स्कूल में प्रति छात्र 8.17 रुपये, तो प्राइमरी में 5.67 रुपये प्रतिदिन प्रति छात्र के हिसाब से मिलते हैं. अब यह भुगतान भी महीने से रुका हुआ है.

उधार मांग कर चला रहे व्यवस्था :

प्राथमिक शाला दादर खुर्द में मिड डे मील की व्यवस्था संभालने वाली महिला सहायता समूह की सदस्य फूलबती बेहद नाराज दिखीं. फूलबती का कहना है कि पिछले 4 महीने से हमें भुगतान नहीं दिया गया है. चावल दाल तक खरीदने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं. दुकानदार से उधार मांगकर किसी तरह व्यवस्था चल रहे हैं. अब दुकानदार भी हमें ताने दे रहा है. घर से पैसे लगाने पड़ रहे हैं. जिससे आर्थिक तंगी है. काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

मानदेय बढ़ाने की बात हुई थी 1500 ही नहीं मिले :

मिड डे मील योजना के अंतर्गत रसोईया का काम करने वाले अमृता मरावी का कहना है कि पिछले 4 महीने से हमें मानदेय नहीं मिला है. सरकार ने हमारा मानदेय 1500 से 1800 और फिर 2500 तक देने के बाद कही थी. लेकिन अब हमें ₹1500 ही नहीं मिले हैं. 1500 में आजकल घर की सब्जी भाजी तक नहीं आती. ऐसे में हम घर कैसे चलाएं और काम कैसे करें, ना हम इस काम को छोड़ सकते हैं, और न कर पा रहे हैं.

समूहों से निवेदन कर चला रहे व्यवस्था :

मिडिल स्कूल बेलगारी नाला के प्रधान पाठक तरुण राठौर का कहना है क्या मिड डे मील की हालत बेहद भव्य हो चुके हैं स्थिति यह है कि अब समूह वाले प्रधान पाठकों से उधार पैसे मांग रहे हैं 4 महीने से पैसे नहीं आने के कारण व्यवस्था संचालित करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है सुप्रीम कोर्ट के ऐसे निर्देश हैं कि एक दिन भी मिड डे मील बंद हुई तो कार्यवाही प्रधान पाठकों पर होगी हम किसी तरह समूह से निवेदन कर व्यवस्था संचालित करवा रहे हैं