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वर्ल्ड थियेटर डे: लाइट कैमरा एक्शन के डिजिटल एरा में आज भी 70 एमएम का दौर क्यों है सुपरहिट – World Theater Day 26 MARCH2024

वर्ल्ड थियेटर डे: लाइट कैमरा एक्शन के डिजिटल एरा में आज भी 70 एमएम का दौर क्यों है सुपरहिट – World Theater Day 26 MARCH2024

वर्ल्ड थियेटर डे के मौके पर हम आपको लाइट कैमरा एक्शन की उस कहानी से रूबरू करवाने जा रहे हैं जो कई लोगों के दिलों में आज भी बसती है. रुपहले पर्दे की वो हसीन यादें हैं 70 एमएम का पर्दा जिसने दर्शकों का खूब प्यार पाया. इसलिए तो आज भी सिंगल स्क्रीन थिएटर को याद कर लोग उस दौर की शानदार कहानियां बताने लगते हैं. तो चलिए आपको भी ले चलत हैं ऊर्जाधानी कोरबा के उस सेनिमाई सफर पर जिसे पढ़कर और जानकर आप भी पुराने दौर में खो जाएंगे.

कोरबा: भारत में सिनेमा और थियेटर डिजिटल हो गया है. रुपहले पर्दे का सफर लगातार तेजी से विकसित होता जा रहा है. सिल्वर स्क्रीन में मल्टीप्लेक्स और ओटीटी की एंट्री हो चुकी है. भारत के डेढ़ सौ साल के सिनेमाई इतिहास के सफर और इस दौर में आज भी 70 एमएम का पर्दा याद आता है. इसने सिनेप्रेमियों के दिल में जो जगह बनाई थी उसकी जगह कोई भी दौर नहीं ले सकेगा. सिंगल स्क्रीन पर फिल्मों को देखने का जो मजा होता था वह आज के मोबाइल और मल्टीप्लेक्स युग में नहीं है. प्रोजेक्टर, फिल्म की रील और सिंगल स्क्रीन थियेटर अब सब सिमट कर रह गई है. एक ड्राइव में ही पूरी फिल्म आ जाती है और सैटेलाइट कनेक्ट डिजिटल प्रोजेक्टर के माध्यम से बेहद सुविधाजनक तरीके से इसे पर्दे पर दिखाया जाता है. लेकिन आज भी 70 एमएम की यादों और उस पर फिल्म देखने के अनुभव का कोई तोड़ नहीं है.

कोरबा में भी बदला दौर, सिंगल स्क्रीन थिएटर की जगह मल्टीप्लेक्स ने ली: दुनिया भर में 27 मार्च को वर्ल्ड थिएटर डे मनाया जाता है. इस खास अवसर पर हम आपको कोरबा जिले के दशकों पुराने चित्र टॉकीज के बारे में बताएंगे. यहां मल्टीप्लेक्स बन चुका है. जहां प्रवेश करते ही दरवाजे पर एक लोहे की मशीन किसी धरोहर की तरह रखी गयी है. खास तौर पर युवा सिनेप्रेमी इसे देखकर रुक जाते हैं और पूछने लगते हैं कि आखिर यह है क्या चीज? तो आज हम आपको इस पुराने प्रोजेक्टर की दुनिया में ले चलेंगे. 70 एमएम के उस सुनहरे दौर से रूबरू कराएंगे. जब पेटी में भरकर रील सिनेमा हॉल तक लाई जाती थी. तब के सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल की उस दीवानगी और क्रेज़ के समक्ष आज के मल्टीप्लेक्स भी फीके नज़र आते हैं.

कोरबा में भी बदला दौर, सिंगल स्क्रीन थिएटर की जगह मल्टीप्लेक्स ने ली: दुनिया भर में 27 मार्च को वर्ल्ड थिएटर डे मनाया जाता है. इस खास अवसर पर हम आपको कोरबा जिले के दशकों पुराने चित्र टॉकीज के बारे में बताएंगे. यहां मल्टीप्लेक्स बन चुका है. जहां प्रवेश करते ही दरवाजे पर एक लोहे की मशीन किसी धरोहर की तरह रखी गयी है. खास तौर पर युवा सिनेप्रेमी इसे देखकर रुक जाते हैं और पूछने लगते हैं कि आखिर यह है क्या चीज? तो आज हम आपको इस पुराने प्रोजेक्टर की दुनिया में ले चलेंगे. 70 एमएम के उस सुनहरे दौर से रूबरू कराएंगे. जब पेटी में भरकर रील सिनेमा हॉल तक लाई जाती थी. तब के सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल की उस दीवानगी और क्रेज़ के समक्ष आज के मल्टीप्लेक्स भी फीके नज़र आते हैं.

 

ड्राइव और सैटेलाइट से आसान हुआ फिल्म दिखाना: नए दौर के युवा लोकेश डिजिटल तकनीक से फिल्म दिखाने का काम करते हैं. लोकेश कहते हैं कि टॉकीज के पुराने कर्मचारी बताते हैं कि किस तरह से वह चकरी में रील घूमाते थे और 24 घंटे वहां खड़े रहकर रील बदलते हुए फिल्म दिखाते थे.हमें उन सब मुसीबत से छुटकारा मिल गया है.

“अब फिल्म रिलीज होने के 1 दिन पहले ड्राइव हमारे पास आ जाती है. जो की कोरियर या ट्रेन से भी पहुंचा दी जाती है. उस ड्राइव से फिल्म को डाउनलोड कर लेते हैं. हमारा डिजिटल प्रोजेक्टर सेटेलाइट से कनेक्ट रहता है. जिसमें डिजिटल कीवर्ड के तौर पर लाइसेंस डालना पड़ता है. इस लाइसेंस को डालकर हम फिल्म को एक हफ्ते के लिए अनलॉक करते हैं. एक बार या प्रक्रिया पूरी होने के बाद पूरे हफ्ते तक फिल्म चलती रहती है. यदि कोई फिल्म एक हफ्ते से ज्यादा चल गई तो दोबारा परमिशन लेना पड़ता है. ड्राइव को डाउनलोड करने और लाइसेंस लेने की इस प्रक्रिया में मुश्किल से दो से ढाई घंटे का समय लगता है. जिसके बाद कंट्रोल रूम में डिजिटल प्रोजेक्टर को ऑन करके छोड़ देते हैं. पर्दे पर फोकस करने का बाद मूवी चलती रहती है. वहां खड़े रहने की भी कोई आवश्यकता नहीं है. फिल्मों को दिखाना अब काफी आसान हो गया है.”: लोकेश वैष्णव, डिजिटल प्रोजेक्टर ऑपरेटर

वो दौर दमदार था: चित्रा मल्टीप्लेक्स के मालिक गोपाल मोदी का कहना है कि अब तो एक साथ एक ही समय में सेटेलाइट से हजारों स्क्रीन पर फिल्में दिखाई जाती है. प्रोजेक्टर के दौर में अमरावती से फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटर के एजेंट रील की पेटी ले कर आते थे. ऐसा भी एक दौर था जब हिट फिल्म को दो थिएटर में दिखाने के लिए शो के समय में अंतर रखा जाता था. बाइक से दो लोग रील को ले कर एक से दूसरे थिएटर पहुंचाते थे. हमारे मल्टीप्लेक्स में रखा ये प्रोजेक्टर सिनेमा के उसी सुनहरे दौर को याद दिलाता है. आज तो सौ करोड़ क्लब और एक वीकेंड फुल हाउस से फिल्म को हिट कहा जाता है. उस दौर में एक साल में किसी थिएटर में बहुत सीमित संख्या में फिल्में लगती थीं.

कुल मिलाकर सिल्वर स्क्रीन के सफर ने जितने भी पड़ाव पार किए हो लेकिन 70 एमएम का वो दौर आज भी दर्शकों को दीवानगी का एहसास करा देता है. फिल्मों को देखने का वह मजा लोगों की पुरानी यादें ताजा कर देता है.