पीजी कॉलेज की प्रिंसिपल को हटाकर भेजा गया भैसमा, अब सालों से जमे पर प्राध्यापकों पर शासन की नजर

पीजी कॉलेज की प्रिंसिपल को हटाकर भेजा गया भैसमा, अब सालों से जमे पर प्राध्यापकों पर शासन की नजर
कोरबा. शासकीय ईवीपीजी लीड कॉलेज की प्राचार्य डॉ साधना खरे को हटाकर भैसमा जैसे छोटे कॉलेज में भेज दिया गया है। दरअसल किसी भी जिले का लीड कॉलेज उच्च शिक्षा विभाग का काफी महत्वपूर्ण अंग होता है। यहां से ही उच्च शिक्षा विभाग की सभी योजनाओं का क्रियान्वयन सभी छोटे कॉलेज में होता है। लीड कॉलेज की प्राचार्य का दायित्व अब तक डॉ साधना खरे संभाल रही थी। पीजी कॉलेज में आदर्श, आत्मानंद सहित चार कॉलेज का प्रभार संभालने वाली साधना खरे को स्थानांतरित कर ग्रामीण क्षेत्र के भैसमा जैसे छोटे कॉलेज भेज दिया गया है।
बताया जा रहा है कि पीजी कॉलेज की व्यवस्था काफी चरमरा गई है। यहां 20 से 25 सालों से जमे प्राध्यापक कक्षाएं नहीं लेते। अराजकता का माहौल है, लेकिन अब शासन ने इस दिशा में नजर टेढ़ी कर दी है। साधना करें के स्थानांतरण के बाद अब एक, दो दशक से भी अधिक समय से इस कॉलेज में जमे प्राध्यापको पर शासन की नजर है। एक-एक कर सभी का स्थानांतरण जिले से बाहर या नक्सल क्षेत्र में भेजे जाने की चर्चाएं चल रही है.
लीड कॉलेज के प्राचार्य का पद फिर खाली :
कोरबा जिले का लीड कॉलेज स्नातकोत्तर महाविद्यालय है। जहांवनियमतः पीजी प्रिंसिपल स्तर के अधिकाती की नियुक्ति की जानी चाहिए। लेकिन अब तक इस कॉलेज के प्राचार्य का पद प्रभार में किसी सहायक प्राध्यापक या प्राध्यापक को दे दिया जाता है। छोटे कॉलेज में प्राचार्य को भेजा जा रहा है, मिनीमाता गर्ल्स कॉलेज में भी एक नियमित प्राचार्य हैं।
जबकि लीड कॉलेज में प्राचार्य का पद रिक्त हो गया है। राजनीतिक रसूख रखने वाले लोग इस कॉलेज में मौजूद हैं। जो पर्दे के पीछे से नियमो की धज्जियां उड़ाते हुए उनकी गलत व्याख्या कर उलजुलूल नियम लागू कर शासन की मंशा के विपरीत अपने हिसाब से कॉलेज का संचालन कर रहे हैं।
इनमें से कुछ लोग जोड़-तोड़कर कॉलेज के प्राचार्य का पद हथियाना चाहते हैं। चर्चा यह भी है कि पीजी कॉलेज में दो हॉस्टल अधूरे हैं, करोड़ों का मरम्मत कार्य है। रूसा के करोड़ों का फंड होता है। जन जनभागीदारी मद के करोड़ों रुपए हैं।
इसके अलावा भी कमीशन के तौर पर मोटी रकम प्रिंसिपल कमा लेते हैं। जिसके कारण इस कॉलेज की कुर्सी को लोग हथियाना चाहते हैं। राजनीतिक रसूख रखने वाले और जुगाड़ू किस्म के चतुर लोग अभी से इस कॉलेज के प्राचार्य की कुर्सी को हथियाने की जुगत में लग चुके हैं। अब देखना होगा कि शासन यहां किसी नियमित पीजी प्राचार्य की नियुक्ति करता है, या फिर जुगाड़तंत्र वाले सालों से जमे घाघ और निष्क्रिय व्यक्ति को ही इस कॉलेज के प्राचार्य की कुर्सी सौंप दी जाती है।
दो दशक से जमे प्राध्यापकों का स्थानांतरण आखिर कब :
उच्च शिक्षा विभाग में भर्राशाही आमतौर पर उजागर नहीं होती। इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। यही कारण है कि प्राध्यापक जहां नियुक्त होते हैं, वहीं से रिटायरमेंट लेते हैं।
10, 20 और 30 साल से प्राध्यापक एक ही कॉलेज में जमे रहते हैं। वह कॉलेज को अपना घर समझ लेते हैं। इसे अपनी जागीर समझते हैं और मनमाने तरीके से नौकरी करते हैं। जबकि उनकी तनख्वाह 3 से 5 लख रुपए तक के होती है। कई नियमित प्राध्यापक निष्ठा से अपनी नौकरी करते हैं। जबकि ज्यादातर लोग अन्य कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं। नियमित कक्षाएं भी नहीं लेते, छात्रों का बौद्धिक विकास और उनके भविष्य को लेकर वह चिंतित नहीं होते। स्कूलों की तरह रिजल्ट देने का दबाव भी प्राध्यापकों पर नहीं होता। पीजी कॉलेज में ही महज 30 फ़ीसदी बच्चे ही पास हो पाते हैं। ज्यादातर बच्चे परीक्षा में फेल हो जाते हैं। लेकिन प्राध्यापकों के सर पर इसका कोई भी दायित्व अधिरोपित नहीं किया जाता। ऐसे में एक ही स्थान पर जमे ऐसे प्राध्यापको स्थानांतरण जरूरी हो जाता है। अब देखना यह होगा कि शासन की नजर इन पर कब पड़ती है और इन्हें कब दूसरे जिलों में भेजा जाता है।
प्राचार्य के हटने के बाद प्राध्यापकों का भी हो सकता है स्थानांतरण :
पीजी कॉलेज के प्राचार्य को हटा दिया गया है। इसके साथ ही अब प्राध्यापकों के भी स्थानांतरण की चर्चा हैम पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में थोक में कॉलेज खोले गए। कोरबा जिले में ही आत्मानंद, रामपुर जटगा ऐसे कई कॉलेज हैं। जहां नियमित प्राध्यापक है ही नहीं, अतिथ शिक्षकों के भरोसे वहां की पढ़ाई चल रही है और अनियमित शिक्षक ही पूरा अध्यापन कार्य करवाते हैं।
जबकि नियमित प्राध्यापक एक ही स्थान पर जमे रहते हैं और मोटे शासकीय वेतन का लाभ उठाते हैं, लेकिन अब जब पीजी कॉलेज के प्रिंसिपल को हटा दिया गया है। तब नियमित पर प्राध्यापकों के स्थानांतरण की भी चर्चा है। सूत्रों से जानकारी के अनुसार 20-30 साल से एक ही स्थान पर जमे प्राध्यापकों को नक्सल वाले जिलों में स्थानांतरित किया जा सकता है
जल्द ही इनकी एक सूची जारी होगी। जिसमें ऐसे प्राध्यापक को चुन-चुन कर बस्तर दंतेवाड़ा और कांकेर जैसे जिलों में भेजा जाएगा।
नाम के बुद्धिजीवी शोध पत्र तक प्रकाशित नहीं :
प्राध्यापकों को समाज में बुद्धिजीवी का दर्जा दिया जाता है। ऐसा इसलिए ताकि वह शोध करें और समाज को नई दिशा दें। कॉलेज के प्राध्यापक एक ही स्थान पर सालों से जमे हैं, लेकिन इतने सालों में शोध पत्र तक प्रकाशित नहीं करवा सके। पीजी कॉलेज में नैक मूल्यांकन के दौरान केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा विभाग की टीम ने कॉलेज पहुंची थी। शोध पत्र को लेकर प्राध्यापकों से जानकारी ली, तब प्राध्यापकों की कलई खुल गयी, उन्हें फटकार भी लगाई थी। कॉलेज के प्राध्यापको की किरकिरी हुई थी। इस वजह से कॉलेज के अंक भी कटे थे। खुद को वरिष्ठ और बुद्धिजीवी कहने वाले प्राध्यापकों के गिनती के शोध पत्र रिसर्च जनरल में प्रकाशित हैं। पीजी कॉलेज में छात्रों को पीएचडी करवाने के लिए कुछ विषय के लिए शोध केंद्र भी स्थापित हैं। लेकिन शोध केंद्र स्थापित होने के कई सालों बाद भी एक छात्र को भी यहां से पीएचडी नहीं करवाया जा सका है। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कॉलेज में काम नहीं करने और निष्क्रियता का माहौल किस स्तर का है।