सांप निकालने के बाद लाठी पीटेंगे भाजपाई, सभापति तो बन गया अब कौन? किस पर? करेगा कार्यवाही!

सांप निकालने के बाद लाठी पीटेंगे भाजपाई, सभापति तो बन गया अब कौन? किस पर? करेगा कार्यवाही!
कोरबा। नगर पालिका निगम कोरबा के सियासी इतिहास में शनिवार को वह अध्याय लिख दिया गया, जो आज तक कभी नहीं हुआ।
कोरबा में भाजपा के लिए यह कला दिन था। संघ के जरिए पार्टी को कायदे में रखने और अनुशासन का पाठ पढ़ने वाली पार्टी के पार्षदों ने संगठन के निर्णय को नकार दिया। उद्योग मंत्री लखन लाल देवांगन के नाक के नीचे बागी सभापति बन गए। अधिकृत प्रत्याशी हार गए।
भाजपा ने कोरबा विधायक के बाद महापौर का चुनाव भी जीता और भाजपाईयों इसे खूब प्रचारित किया कि यह लखन भैया का जादू है, फिर चल गया। लेकिन सभापति के चुनाव में जादू नहीं चला और जिले में भाजपा की लाज लुट गई। विधायक और मंत्री बनने के 1 साल के भीतर ही खुद लखन लाल देवांगन के पार्टी के पार्षदों ने ही उनका पानी उतार दिया। अधिकृत प्रत्याशी की घोषणा होने के बाद भी पार्षदों ने अपने द्वारा एक बागी प्रत्याशी को सभापति का चुनाव लड़वाया और उसे जितवा भी दिया।
जो पार्षद अभी से ही मंत्री की बात नहीं सुन रहे, वह आने वाले 5 सालों तक क्या भाजपा नेताओं की बात सुनेंगे और क्या महापौर भी इसी तरह से निरंकुश होकर काम करेंगी?
भाजपा संगठन के लिए जिले में इससे बड़ी बेज्जती नहीं हो सकती, यह एक्सट्रीम लेवल की बेइज्जती है। संगठन के शीर्ष नेताओं को मुंह छुपा कर कहीं अज्ञातवास में चले जाना चाहिए। तो प्रदेश स्तर के शीर्ष नेतृत्व को चाहिए कि एक सिरे से जिले के संगठन को पूरी तरह से खो खो खेला दिया जाए। बेईज्जती जितनी बड़ी हुई है, उसके बाद यदि पूरे संगठन को भी उखाड़ दिया जाए। तब भी उसकी भरपाई नहीं हो सकती।
अध्यक्ष ने जारी करवाया है बयान कि करेंगे कार्यवाही, लेकिन किसी पर और कैसे? :
सभापति का निर्वाचन हो जाने के बाद भाजपा जिला अध्यक्ष मनोज शर्मा ने अपने निष्क्रिय मीडिया प्रभारियों से बयान जारी करवाया है कि इस मामले में उच्च स्तरीय जांच होगी और कार्यवाही होगी, लेकिन सांप निकालने के बाद लाठी पीटने का क्या फायदा? सभापति जिसे बनना था, वह बन चुका।
अब कार्यवाही करके भी आप क्या करेंगे?
5 साल तक अब सदन का संचालन नूतन सिंह ठाकुर ही करेंगे।
यदि कुछ करना ही था तो पहले कर लिया होता, अपने अधिकृत प्रत्याशी को जिताने के लिए कोई ठोस और पुख्ता रणनीति बनाई होती। सदन में 67 में से 45 पार्षद बीजेपी के चुनकर आए हैं। लेकिन जिस तरह से इन्हीं पार्षदों में बीजेपी के लुटिया डुबाई, उससे भाजपा के संगठन को जिले से लेकर राज्य तक सरेआम शर्मसार होना पड़ा। ऐसा मामला दिल्ली तक भी पहुंच जाएगा, पार्षदों की संख्या इतनी अधिक होने के बाद… होना तो यह चाहिए था कि भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार को निर्विरोध सभापति के पद पर निर्वाचित हो जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा हो नहीं सका, अधिकृत प्रत्याशी को भाजपा के ही पार्षदों ने निपटा दिया। जमकर क्रॉस वोटिंग की और भाजपा के टिकट पर ही चुनाव लड़कर पार्षद बने एक बागी उम्मीदवार को सिकंदर बना दिया।
इतनी गुटबाजी तो कांग्रेसियों में भी नहीं :
वैसे तो गुटबाजी और बगावत के लिए कांग्रेसी कुख्यात हैं।
पार्टी के हर निर्णय से कांग्रेस नेता नाराज हो जाते हैं और बगावत कर देते हैं। कांग्रेसियों के लिए यह सामान्य बात है। खेमेबाजी और आपसी झगड़े के कारण ही आज कांग्रेस हाशिये पर हैं। लेकिन अब बीजेपी ने भी लगता है कि कांग्रेस की ही राह पकड़ ली है। बीजेपी अनुशासन की दुहाई देती है, खुद को दुनिया के सबसे बड़ी अनुशासित पार्टी बताती है। लेकिन जितने भाजपा के जितने गुच्छे कोरबा के संगठन में हैं। इतने तो कांग्रेसियों में भी नहीं हैं। विजयी सभापति को भाजपा के एक-दो गुट का समर्थन प्राप्त था, जिन्होंने नूतन के लिए लॉबिंग की।
सामान्यतः चुनाव जीत जाने के बाद गुटबाजी और अंतरकलह की चर्चा नहीं होती, लेकिन हार से सारी असलियत खुलकर सामने आ जाती है। यह गुरबाजी न सिर्फ सभापति के चुनाव में थी। बल्कि जब लखन लाल देवांगन को विधायक का टिकट मिला तब भी थी, भाजपा जिलाध्यक्ष बनाते समय भी थी, महापौर टिकट को लेकर भी थी और एक-एक पार्षदों को जिस तरह से निपटाया गया तब भी थी।
लेकिन जीत के कारण इसकी चर्चा हुई भी तो दब गयी। अब जब सभापति में एक्सट्रीम बेज्जती हुई है। तब सभी गुटों की चर्चा हर आम और खास के जुबान पर है। वैसे महापौर चुनाव के बाद भाजपा में एक दो गुट और भी बढ़ सकते हैं। आने वाले चुनाव में गुडबाजी और चरम पर होगी।
पर्दे के पीछे रहने वाले पर क्या संगठन करेगा कार्यवाही :
सभापति चुनाव के बाद यह स्पष्ट हो चुका है कि किसी गुट विशेष के समर्थन से ही सभापति का निर्वाचन हुआ है।
अब क्या पहन के पीछे जिन खिलाड़ियों ने इस पूरे खेल को खिला है संगठन में हिम्मत है कि उन पर कार्रवाई कर सके इतना नहीं तो कम से कम क्या यह हो पाएगा की क्रॉस वोटिंग करने वाले पार्षदों को चिन्नानपीठ किया जा सके देखना दिलचस्प होगा की कार्रवाई की बात कहने वाले जिला अध्यक्ष वोटिंग की क्या यह चिनांकन हो पाएगा कि किन लोगों ने क्रॉस वोटिंग की किसके कारण भाजपा की इतनी किरकिरी हुई।
कौन-कौन चाहता था एक हितानंद की हार :
हितानंद की हार के बाद अब यख तो स्पष्ट हो गया है कि सभापति पद के लिए उनका काफी विरोध था।
लेकिन सवाल यह है कि कौन-कौन चाहता था कि हितानंद की हार हो जाए? लोगों को अब यह पता भी लग चुका है कि विजयी सभापति किस गुट के प्रत्याशी थे और उन्हें कहां से समर्थन मिला। क्या पार्टी में गुटबाजी को बढ़ावा देने वालों पर कभी गाज गिरेगी? यह गुटबाजी पार्टी को कहां ले जाएगी? क्या शीर्ष नेताओं को यह नहीं दिख रहा कि आपस की गुटबाजी से पार्टी की किस तरह किरकिरी हो रही है? या फिर शीर्ष नेता भी चाहते हैं कि ऐसे गुट बने रहें और वह राज करते रहें।
राजनीति का यह तरीका जनता भी देख रही है। आने वाले समय में गुटों का नेतृत्व करने वाले नेताओं को भी इसकी कीमत जरूर चुकानी पड़ेगी। वर्तमान में कई दिग्गज सभापति की कुर्सी पाने के लिए लाइन में थे। जिस तरह से कुछ दिन पहले अशोक चावलानी का एक वीडियो वायरल करवाया गया और छवि खराब करने की कोशिश की गई, तभी से यह चर्चा थी कि सत्ता का नशा संभालना आसान नही है। राजनीति में इतनी गंदगी ठीक नही है। सियासत में जो हो जाए वह कम है, लेकिन जो अब हो रहा है, वह भी ऐतिहासिक है।
बचेंगे सिर्फ गुट और संगठन हो जाएगा समाप्त :
जिले के वीवीआईपी अध्यक्ष के कार्यकाल के बाद संगठन का जो हाल हुआ है। वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। वीवीआईपी अध्यक्ष किसी मंत्री से काम नहीं थे। कांग्रेसी अधिकारियों से सेटिंग कर उनकी पैरवी किया करते थे।
किसी भी पद के लिए टिकट मिलने के पहले ही दिमाग सातवें आसमान पर था। टिकट मिल जाता तो, पृथ्वी ही छोड़ देते।
खैर इस दिशा में मंथन नहीं हुआ तो संगठन–संगठन का अलापने वाली पार्टी का हाल इससे भी बुरा होगा।
सिर्फ गुट ही गुट शेष रह जाएंगे और संगठन समाप्त हो जाएगा।