पार्टियों के भरोसे मेयर प्रत्याशी, विकास के लिए किसी के पास नहीं है अपना विजन! “वर्तमान पर भूत, ना पड़ जाए भारी”

पार्टियों के भरोसे मेयर प्रत्याशी, विकास के लिए किसी के पास नहीं है अपना विजन! “वर्तमान पर भूत, ना पड़ जाए भारी”
कोरबा। भाजपा कांग्रेस ने अपना-अपना जान घोषणा पत्र जारी किया है। बीजेपी ने से पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेई के नाम पर जारी किया है। तो कांग्रेस ने भी एक घोषणा पत्र बनाया है। दिक्कत यह है कि दोनो ही घोषणा पत्र राज्य स्तर के घोषणा पत्र हैं। इनमें जिलों के लिए कुछ भी नहीं है.
कोरबा से चुनाव लड़ रहे दोनो प्रमुख दलों के प्रत्याशी इन्हीं घोषणा पत्र के भरोसे जनता के बीच जा रहे हैं और इसी के भरोसे ही वह इस उम्मीद में है कि उनके नैया पार लग जाएगी। दोनों ही प्रत्याशियों के पास क्षेत्र के विकास के लिए अपना खुद का कोई विजन नहीं है।
ऐसे में जनता किसके सर जीत का सेहरा बांधती है। यह देखना दिलचस्प होगा, हालांकि जीतेगा जो भी वह किस्मत से ही जीतेगा।
साक्षर संजू बीजेपी का चेहरा, महिला मोर्चा में भी टकराव, पति थे टीआई :
संजू देवी राजपूत कोरबा नगर निगम में बीजेपी का चेहरा है। जिनकी शैक्षणिक की योग्यता महज साक्षर है। संपत्ति बिहार में भी है। संजू नगर निगम में पार्षद रह चुकी हैं। एक बार पार्षद का चुनाव भी हार चुकी हैं। संगठन ने सभी को दरकिनार करते हुए संजू का नाम जरूर फिनक किया। लेकिन शैक्षणिक योग्यता और वाकपटुता सहित राजनैतिक दक्षता के पैमाने ओर उनसे ज्यादा क्षमता करने वाली महिला नेत्रियों को किनारे लगाने से कुछ मन मुटाव और विरोध भी बना हुआ है।
संजू के पति चंद्रमा सिंह राजपूत को जिले के कोतवाली में ही टीआई थे। टीआई रहते उनके कार्यकाल को शहर के लोग भूले नहीं हैं। लोगों के जुबान पर यह चर्चा है कि तत्कालीन टीआई पति के कार्यकाल के नुकसान महापौर प्रत्याशी पत्नी को तो नहीं झेलना पड़ेगा? इन सबके अलावा सबसे बड़ी बात यह भी है कि पार्टी के घोषणा पत्र को छोड़ दिया जाए तो भाजपा की महापौर प्रत्याशी के पास क्षेत्र के विकास के लिए अपना कोई ठोस विजन नहीं है। विकास का कोई रिडमैप या कार्ययोजना नहीं है। नामांकन भरने से लेकर आज तक वह पार्टी के दूसरे नेताओं की उंगली थाम कर चल रही हैं, और बाकायदा यह कहती हुई नजर आ रही हैं कि वरिष्ठ नेता जैसा कहेंगे वैसा काम करूंगी।
जिसने की थी बगावत उसके पक्ष में कैसे माहौल बनाएंगे कांग्रेसी :
उषा तिवारी कांग्रेस की महापौर प्रत्याशी हैं। जो कि महंत के खेमें से आती हैं, यह बात तय सर्वविदित है कि कांग्रेस में खेमेबाजी कितनी ज्यादा है। वर्ष 2014-15 में जब पूर्व मंत्री जय सिंह अग्रवाल की पत्नी रेणु अग्रवाल ने महापौर का चुनाव लड़ा था। तब उषा तिवारी ने पार्टी से बगावत कर दी थी, उन्हें 24000 से अधिक वोट भी प्राप्त हुए थे। उस समय 24000 वोट भाजपा को नुकसान पहुंचा गए, ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता था! उसे वक्त परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आया था।
फिर भी वो बगावत कांग्रेसियों को आज भी याद है। अब सवाल यह है कि जिसने बगावत कर कांग्रेसियों को ही निपटाने का प्रयास किया था, कांग्रेसी उसके साथ निष्ठा क्यों निभाएंगे?
हालांकि आगे चलकर उषा को पार्टी से बर्खास्त किया गया फिर पार्टी में ले लिया, अब वह नेता प्रतिपक्ष चरण दास महंत और सांसद ज्योत्सना महंत की करीबी हैं। उनके साथ ही चलती हैं।
पुरानी नेता होने के कारण उषा तिवारी के नाम को आगे तो कर दिया है। लेकिन जिसने बगावत की उसके साथ खेला नहीं होगा? इसकी कोई गारंटी नहीं है। फ्लोरा मैक्स कंपनी से ठगी के शिकार महिलाओं के साथ भाजपा के मंत्री ने बदजुबानी की थी तब भी उषा और कांग्रेस की महिला विंग पूरी तरह से खामोश रही। चुनावी मुद्दे के सवाल पर भी इनके पास कोई जवाब नहीं होता, भाजपा ने घोषणा पत्र जारी किया। इसके बाद लगभग उसकी नकल करते हुए कांग्रेस का भी घोषणा पत्र आया।
अब इसी को प्रत्याशी आगे बढ़ा रहे हैं। क्षेत्र का विकास कैसे होगा? जनता की उम्मीदें क्या है? इस दिशा में ना कोई विजन है, ना कोई प्लान है। केवल कांग्रेस के कैडर वोटर के भरोसे ही कांग्रेस की महापौर प्रत्याशी यह चुनाव लड़ रही हैं।